कविता:ए दिल...

ए दिल सुन ले मतकर गुस्ताखीयाँ,
मत चल ईश्क की राह पर यारा।

जीसे चाहो वो न मिलै जो मिले,
जो मिले ईस दिल को न भाएँ।

यही तो दस्तूर है जिदंगी का, 
ऐ दिल यह दस्तुर समझ लै जरा।

अपने बहकते कदमों को जरा संभल कर रखा करो,
मतलबी लोगों को उनकी औकात बताना शीख ले जरा।

प्यार करनेवाले अक्सर भंवर मैं बहक जाते,
सपने तो दिल बहना के लिए होते है,

पर सच कहाँ होते हैं,ऐ आवारा दिल
ऐ बात तु समज जा,मत चल के काँटेभरी राहपर

ए दिल सुन ले मतकर गुस्ताखीयाँ,
मत चल ईश्क की राह पर यारा।

शैमी ओझा "लफ्ज़"

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